दुनिया में किसी से भी पूछिए, बहुत दार्शनिक लहजे में कहेगा – “ईश्वर की खोज में हूँ। ” परन्तु देखा जाए तो सब का मन भौतिक इच्छाओं की पूर्ति से कभी रिक्त ही नहीं होता, ईश्वर की खोज तो दूर की बात है। आप ध्यान से अवलोकन करें, तो पाएंगे कि अधिकतर लोग प्रार्थना गृह में अपनी सुविधा तथा सुख के साधन की ही इच्छा करते हैं। उस समय ईश्वर प्राप्ति की इच्छा न जाने कहाँ चली जाती है।
ईश्वर प्राप्ति की यह गौण इच्छा सम्भवतः खाली समय में चर्चा का विषय मात्र है। सुख समृद्धि की प्राप्ति पर ईश्वर को धन्यवाद देना भी किसी की प्राथमिकता नहीं देखी गयी है। तथापि, मनोवांछित प्राप्ति न होने की दशा में, यही लोग, ईशवर पर अभियोग लगाने से नहीं चूकते। वस्तुतः हमे अपने ईश्वर पर विश्वास ही नहीं है, और क्यों हो ? हमने कभी उसे देखा ही कहाँ है? बात एक बार पुनः ईश्वर के अस्तित्व पर आ जाती है। बड़ी विषम परिस्थिति है – सबको याचना उसी से करनी है परन्तु उसका किसी को ज्ञान ही नहीं है।
मैं सब से अलग नहीं हूँ। अभी मैं भी ईश्वर के विषय में बड़ी-बड़ी बातें लिख रहा हूँ, तो क्या मैंने उसे खोज लिया है? समस्त ब्रम्हाण्ड के रचैया उस सर्वशक्तिमान की कोई थाह कैसे लगा सकता है। आश्चर्य है की मैं उसे नहीं खोजता और नही खोजने का दावा करता हूँ परन्तु विश्वास है कि सम्भवतः परिचित हूँ मैं उनसे। कुछ वर्षो पूर्व प्रारम्भ हुई मेरी यह अनुभूति यात्रा। मंदिरों में उसको ध्यान में खोजना एकाएक नहीं हुआ।
यह दशा, सम्भवतः मेरे ईश्वर प्रेम से प्रस्फुटित हुआ थी। मैं एक मंदिर के संग्रहालय में प्रबंधक के रूप में कार्यरत था। मंदिर में था तो कार्य के अतिरिक्त, आरती और अनुष्ठानों में सम्मिलित हुआ करता था। उत्सुकता बढ़ी, तो प्रेम बढ़ा, प्रेम बढ़ा तो उनका बोध होने लगा। मैंने अनुभव किया कि यह अवस्था, प्रेम के कारण ही आई थी। प्रतिदिन प्रार्थना करते हुए, धीरे-धीरे मैंने भौतिक याचना करनी छोड़ दी थी। सोचता था – “क्या रोज़-रोज़ एक ही प्रार्थना करना।” याचना के स्थान पर प्रेम उपजने लगा और वह मेरे निकट आने लगे। मेरा प्रेम बढ़ा और वह मुझ में समाने लगे। मेरा मंदिर जाना छूट गया। जो मन में समाये हों, उन से मिलने मंदिर क्या जाना?
पहले विभिन्न लोगो के कहने से मैं, दरगाह पर भी गया हूँ और गुरूद्वारे भी। मंदिर भी गया हूँ और गिरजा घर भी। अब भी जाता हूँ, लेकिन उसे ढूंढने नहीं – अपितु प्रत्येक स्थान पर उन्हें देखने। विश्वास कीजिये, वे प्रत्येक स्थान पर विद्यमान मिले। वही रूप… वही तेज। भ्रम सा हुआ, कैसे सर्वत्र व्याप्त हैं वे???
इसी एक उत्सुकता ने मुझे मेरे मार्गदर्शक के द्वार दिखा दिए। वैसे तो शरत जी के संपर्क में, मैं रेकी के अध्ययन हेतु आया था, परन्तु छत्रछाया का प्रभाव तो होता ही है। बहुत ही सरल वचनो से उन्होंने मेरा पथ आलोकित कर दिया। मेरी दिशा बाहर की अपेक्षा भीतर की ओर निर्देशित कर, मानो ब्रम्हाण्ड के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। आत्म का अध्ययन प्रारम्भ करते ही सब कुछ स्पष्ट हो गया। यही तो आध्यात्म है – अर्थात अध्ययन आत्म का।
शरत सर का हाथ पकड़ कर मैं एक अद्भुत आयाम में आ गया था। यहाँ सब कुछ आलोकि तथा संक्षेप भी विस्तृत था, विस्तार की थाह न थी – ऊर्जामय, विलक्षण तथा परम सुखदायक। शरत सर, ज्ञान तथा विज्ञान के भंडार हैं। उन्होंने ऊर्जा की जो रश्मि थमा दी, मैं उसी को पकड़ कर बढ़ने लगा। ईश्वर तो कभी भी मुझ से पृथक नहीं थे – परन्तु अब वे ओर स्पष्ट थे।
तदोपरांत मुझे….. मुझे क्यों, हम सबको हमारा अपना वीके मिला। ये शरत सर का एक महान अविष्कार था जो उन्होंने पूरे समाज को समर्पित किया है। यह एक ऐसा अविष्कार है जो एक ही रात में, एक साधारण व्यक्ति को विशेष बन देता है। मैं भी सर के अनुग्रह से विशेष बन गया। आज इस लेख के द्वारा मैं अपनी आत्मकथा नहीं लिख रहा, अपितु वीके की कुछ विलक्षणताओं को स्पष्ट करना चाहता हूँ, जिससे सम्भवतः हममे से कई, जो दिव्य ऊर्जा क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं, लाभान्वित हो सकते हैं। आवश्यकता है वीके को जानने की। मैं अपने सभी लेखो में, बस यही प्रचार करता हूँ।
वाइब्स कड़ा (वीके) के निर्माण का आधार
ज्ञान तथा विज्ञान के मिश्रण से निर्मित होने पर भी वीके का आधार आध्यात्म है और इसी कारण से वीके की शक्तियां विज्ञान के तर्क से परे हैं। जो व्यक्ति वीके का केवल वैज्ञानिक मापदंड से उपयोग करते हैं, सम्भवतः उन्हें सीमित उपलब्धि ही मिलेगी। उन्हें जानना चाहिए कि जहाँ विज्ञानं की उड़ान समाप्त होती है, वहीँ से एक आध्यात्मिक व्यक्ति की सोच प्रारंभ होती है। अर्थात दिव्य ऊर्जा संसार, आज के विज्ञानं से अधिकाधिक विस्तृत तथा विशाल है।
इस तथ्य पर विश्वास ही, दिव्य ऊर्जा क्षेत्र में हमारा पहला पदार्पण होगा। अन्यथा हमारा मन सर्वदा सशंकित रहेगा और शंका उपलब्धि में बाधक होती है। ध्यान से देखने से हम पाएंगे कि पिछली बार जब हम विफल हुए थे, उसका प्रथम कारण हमारे मन की शंका ही थी।
अब प्रश्न यह उठता है कि यह विश्वास कहाँ से आये ? कहते हैं की प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती – परन्तु जिस ऊर्जा को देखा ही नहीं उसका प्रमाण कहाँ से लाएं ? उत्तर सदृश है – ऊर्जा की अनुभूति !!! ऊर्जा की अनुभूति ही हमारा प्रमाण है। यह अनुभव, यह चेतना, हमारे मन के चक्षु खोलने के लिए प्रयाप्त है। फिर असम्भव भी घटित होते दिखाई देगा। अब इस ऊर्जा के अनुभव के लिए हमे किसी पर्वत, कन्दरा अथवा जंगल में जाके तप करने की आवश्यकता नहीं —— वीके है ना !!!
कभी सोचा है, कि सप्ताह में तीन दिन, हम सभी “मास हीलिंग” के लिए क्यों लालायित रहते हैं ? ऊर्जा की अनुभूति के लिए !!! सबके उत्साहवर्धक टिपण्णी पढ़कर बहुत हर्ष होता है, परन्तु तत्पश्चात हम में से ही कुछ लोग यह पूछ रहे होते हैं की एक बोतल पानी को उर्जित करने के लिए कड़े को कितनी बार घुमाए, तो लगता है कि सन्देश अभी पंहुचा नहीं। यही आज मैं रेखांकित करना चाहता हूँ – वीके का प्रयोग करते हुए, ज्ञान और विज्ञानं के साथ आध्यात्म का भी समावेश कीजिये। आपका पथ सरल हो जाएगा। विश्वास तो बढ़ेगा ही – उपलब्धि भी बहुतायत होगी।
मैं स्वयं ऐसा ही था। आपको गुप्त बात बताता हूँ, किसी से कहिएगा नहीं – पहले मैं भी, कड़ा घुमाते हुए गिनता था पंद्रह बार, पच्चीस बार, सौ बार। लेकिन पानी प्रयाप्त उर्जित हुई अथवा नहीं, यह पता नहीं चलता था। परन्तु जैसे जैसे शरत सर का आध्यात्मिक आशीर्वाद मिलने लगा, ऊर्जा की अनुभूति होने लगी।
क्योंकि अब मैं ऊर्जा को अनुभव करने लगा था, इसलिए मैंने यह भी अनुभव किया कि ऊर्जा प्रवाह तेज़ होने पर, कड़ा दो बार घुमाते ही बोतल उर्जित हो जाती थी और कभी अनमने में ऊर्जा प्रयाप्त मात्रा में जाती ही नहीं थी। अब यह सब मैं इसलिए जान पाया क्योंकि मैंने विज्ञानं में आध्यात्म का समावेश किया। फिर किसी से पूछना नहीं पड़ा कि कड़ा कितनी बार घुमाना है।
वाइब्स कड़े की कार्य क्षमता
अब कई लोगों को सम्भवतः यह भी शंका होती होगी कि क्या यह कड़ा वास्तव में कार्य करता है? हमे तो कोई परिणाम या उपलब्धि नहीं मिली। लेकिन वे पूछने से सकुचाते हैं। सम्भवतः आपस में काना-फूसी कर लेते हैं। वीके, ब्रम्हाण्ड में व्याप्त 16 सर्वोत्तम उर्जाओ में से 11 साध्य शक्तिशाली ऊर्जा संपन्न उपकरण है।
इसमें ना केवल ओषधिय तथा वैज्ञानिक साध्यताओं से परे जाकर कार्य करने की क्षमता है अपितु यह ज्योतिष शास्त्र, खगोल शास्त्र, अथवा भौतिक सम्बन्धी किसी भी प्रकार की सहायता एवं समाधान करने में सक्षम है। इसकी कार्य क्षमता वैज्ञानिक ज्ञप्ति से कहीं बढ़कर है। प्रारंभिक उपयोगकर्ताओ से कई बार यह अपेक्षित है कि उनको वीके से वांछित परिणाम न मिला हो।
ऐसी अवस्था में उनके यह समझना चाहिए कि किसी भी नयी कला को सीखने में समय लगता है। जादूगर को भी जादू की कला को सीखना पड़ता है, फिर एक क्षण में यह आलोकिक क्रिया कैसे सिद्ध हो जायेगी? चूँकि वे नए हैं, उन्हें सय्यम रखना होगा। स्वयं को मूल्यांकित करते हुए सोचना होगा कि :-
१. वीके प्राप्त करने के पश्चात क्या आपने उस का सही विधि से उपयोग किया? यदि हाँ, तो कितना?
२. आपने वीके द्वारा जिस कार्य का आवाहन किया, क्या आप उस के योग्य हो चुके हैं?
३. कार्य सिद्ध न होने की स्थिति में, क्या आपने वरिष्ठ जनो से परामर्श लिया?
४. क्या आपने अपनी असफलता पर, वीके के जनक – शरतसर से प्रतिवेदन किया?
यदि आपने उपरोक्त सलाह के अनुरूप, सय्यम से कदम बढ़ाए हैं, तो मै समझता हूँ कि आपका संदेह निवारण हो चुका होगा तथा आप संतुष्ट होंगे। अन्यथा litairian website के testimonial में दर्ज २०० से भी अधिक सफलता के विवरण पढ़िए, जो वीके की सफलता की विजय गाथा गा रहे हैं।
VIBBES KADA Frequently Ask Questions {FAQ}
वीके स्वयं मेधावी है – इसका सरलता से उपयोग करें
सात वर्षो से उपयोग करते हुए मैंने वीके को कभी ओषधि ज्ञान देने का प्रयास नहीं किया। परन्तु देखता हूँ, आज कल सभी उपचार करते हुए वीके को अपना ज्ञान सिखाने का प्रयास करते हैं। मेरा मानना है कि वीके की अपनी अथाह ज्ञान क्षमता है। सरल अभिपुष्टि (Affirmation) भी सफल उपचार के लिए पर्याप्त है।
अपनी ऊर्जा केंद्रित यात्रा में मैंने कुछ छोटी व सरल बातों का सर्वदा ध्यान रखा। आपको भी उल्लेख करता हूँ।
१. नए उपभोक्ता को वीके के साथ समन्वय होना आवश्यक है। आज वीके मेरे शरीर का एक अंग बन गया है। मैं इससे बात करता हूँ, और यह मेरी सुनता है। यहाँ तक कि यह मेरी सोच को भी कार्यान्वित करता है। यह अवस्था एक दिन में नहीं आती। अच्छा बताइये, क्या आपकी पत्नी / पति / पुत्र अथवा पुत्री, जो आप के साथ इतने वर्षो से हैं, आपकी हर कही हुई बात को पूरा करते हैं? फिर क्यों अपने कुटुंब को घर से नहीं निकाल देते ? चलिए छोडिए, यह बताइये, क्या जिस ईश्वर के सामने आप रोज़ गिड़गिड़ाते हैं, वह आपकी हर प्रार्थना पूरी करता है ? फिर क्यों यह शिकायत नहीं करते ? फिर क्यों अपने ईश्वर से प्रार्थना करना छोड़ नहीं देते?
साथ ही वीके का अपना विवेक है। हमारी प्रत्येक इच्छा, प्रार्थना, आकाँक्षाए वं अभिलाषा, सर्वदा अपने हित अथवा स्वार्थ की होती है, परन्तु ब्रम्हाण्ड का अपना परिमाण है। उसका अपना न्याय है जो सब के हित को देख कर न्याय करता है। वीके ब्रम्हाण्ड की देन है सो आपकी इच्छा पूर्ती के लिए, वह उसकी परिधि से परे नहीं जाता और हम निराश हो जाते हैं।
२. वीके को प्रारम्भ में सरल कार्यों में प्रयोग करें। इस से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। कई बार लोग, जो अभी बोतल उर्जित (charge) करना सीख रहे हैं, साइकिक सर्जरी के विषय में पूछते देखे गए हैं। यह उनकी अतिउत्सुकता है परन्तु योग्यता नहीं। ऐसे में यदि वे विफल होते हैं तो यह वीके की असफलता नहीं है – उन की अयोग्यता है। हमे सय्यम रखना चाहिए तथा धीरे धीरे विषय पर अपनी पकड़ बनानी चाहिए।
३. वीके का उपयोग करें – उस की परीक्षा न लें। कई उपचारक यदि यह सोचें कि “अभिपुष्टि (Affirmation) कर दी है, चलो देखते हैं क्या होता है” ऐसे व्यक्तियों को समझना चाहिए कि वीके, रुमाल में से अंडा निकालने वाला मदारी नहीं है। श्रद्धा से, रुझान से, जैसे मंदिर में ईश्वर से इच्छा पूर्ती करने को कहते हैं, वैसे हीं वीके से अनुरोध करें। फिर देखें चमत्कार।
४. वीके ब्रम्हाण्ड की परिधि से बाहर नहीं जाएगा। केवल साकारात्मक एवं संभव इच्छाएं ही फलीभूत हो सकती हैं।
५. योग्यता के अनुरूपक भी यदि सफलता न मिले, तो हताश न हों। याद करें स्कूल में क्या सभी प्रश्नों के उत्तर आप सही देते थे? ग़लत भी तो होते थे। तब क्या आपने पढ़ाई छोड़ दी थी ? नहीं ना ? प्रयास कीजिये सफलता मिलेगी।
६. जैसा की मैंने प्रारम्भ में ही कहा था, अपने आध्यात्म को भी जगाइए।