मातृ शक्ति की शक्ति,
परमात्मा के बनाये इस संसार की खूबसूरती को निहारते हुए विचार आते हैं नन्हें बालक की तरह लिपट जाऊ इस माता की गोद मे जिसे कुदरत भी कहते है।
माता का वो प्रेम जो धरती की गोद मे है, धन धान्य से, फल पेड पोधो से, खनिज पदार्थों से हमेशा देने का ही भाव रखने वाली धरती माता को लाखों प्रणाम है।
वो पावन जल का थके हारे मन की प्यास बुझाना और तन को शीतल करना जैसे बालक की सारी थकन को अपने आँचल में समेट लेना।
वो अग्नि का नर्म-नर्म ऊष्मा से मेरे तन की सिहरन को प्यार देना, ये आसमा, हवा, बारिश की बुँदे, वृक्षो की छाया ये सारा एहसास मुझे माता के निश्चल प्रेम सा ही दिखा।
अज़ब एहसास है कि जब नन्हा बालक माता की गोद से लिपट जाता है तो सारी शरारतें शिकायतें बह जाती है और सिर्फ प्रेम का सागर ही बचता है शायद यही तो समर्पण है।
तभी तो साधुजन नवविवाहिता स्त्री को शत पुत्रवती का आशीर्वाद देकर कहते थे कि 101वा पुत्र तेरा पति ही हो जाए, दोनों के प्रेम की इतने अंतस तक गहराई हो जाये की पुरुष का स्पर्श स्त्री को मातृत्व के वात्सल्य का स्पर्श लगें।
वो हमारे सभी देवताओं की प्रतिमा को बिना दाढ़ी मूछों के स्त्रीनुमा बनाना शायद यह मातृत्व के भाव को ही दर्शाता है।
वो जो गुण हैं, धर्म है, समर्पण है, प्रेम है, सादगी है, शांति है, सामर्थ्य है, साहस है, सहन शक्ति है, दया है, क्षमा है सब मातृत्व का एहसास है।
सिर्फ स्त्री और पुरुष के शारिरिक असमानता, सामाजिक तुलना का नाम ही मातृत्व नहीं है यह तो शरीर से परे प्रेम का, भक्ति का, समर्पण का एहसास है, जो माता-पिता, भाई-बहन, मित्र हर रिश्ते को पावन और प्रेममय बनाता है।
यह तो वो मातृ शक्ति है जिसके बिन हर बुद्ध का तप अधूरा है, हर शिव का ज्ञान अधूरा है, हर स्त्री पुरुष का मान अधूरा है।
सबसे विशेष बात है कि यही वो पूर्णात्मक शक्ति जिसको प्राप्त किये बिना हर समाधि हर ध्यान अधूरा है। बस परमात्मा को निहारते हुए ये विचार आते है शायद माता की ऐसी गोद का चिंतन मेरा पूर्ण हो जाए तेरा तुझको अर्पण हो जाए ।