पग-पग आगे बढ़ते रहना। ऊर्जा सागर है यह, बूँद भी प्राप्त हो तो तर जाएंगे by Sanjay Roy

urja-sagar

कई बार अद्भुत एवं असमंजस की स्तिथि सम्मुख आ जाती है तथा निर्णय नहीं हो पाता कि वक्तव्य का प्रतिकार करें अथवा उसे किसी की अनभिज्ञता कहें। अभी कुछ ही दिवस पूर्व, एकपादुका (जूता) उद्योगपति से भेंट-वार्ता कर रहा था।मेरे संगठन(कंपनी) द्वारा निर्मित उत्पाद के विषय में वे आलोचनात्मक हो गए तथा पूछने लगे कि “आपका उत्पाद तो महँगा है, आगरा में यही वस्तु २० प्रतिशत अल्प मूल्य में उपलब्ध है। उसमे भी यही सामग्री विद्यमान है फिर आपका उत्पाद ही महँगा क्यों है?” मैंने प्रत्युत्तर में उनसे पूछा “श्रीमान, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि चित्ररेखांकित करने हेतु कागज़ का क्या मूल्य होता है? उन्होंने कहा लगभग ५ रुपये। मैंने पूछना जारी रखा “और कुछ बोतल रंग का, एवं २ – ४ कूचियों का क्या मूल्य होगा? उन्होंने वह भी बताया।मैंने समस्त योग कर के उन को बताया कि चित्र निर्माण में लगने योग्य सभी सामग्री का कुल योग लिया जाए तो वो २५ रुपये से ५० रुपये में उपलब्ध हो जाता है, तो फिर“मोना-लीसा” के तैलचित्र का मूल्य बहु-कोटियों (करोड़ो) में क्यों आँका जाता है। उपयोग तो उस मे भी यही सामग्री हुई होगी ना?

मेरा ग्राहक अवाक हो गया, परंतु इस से पूर्व कि वह मुझ से रुष्ट हो जाए, मैंने उन्हें अपना वक्तव्य स्पष्ट किया कि उत्पाद का मूल्य केवल उस मे उपस्थित, उसकी सामग्री ही नहीं होती।उसके उत्पादन में लगे हुए शोध तथा रचनात्मक पक्ष भी होते हैं जिसका मूल्यांकन हमे विस्मृत नहीं करनी चाहिए।

उपरोक्त घटना का उल्लेख मैंने इसलिए किया क्यों कि वीके के सन्दर्भ में कई लोगो की असीमित अपेक्षाएं हैं तथा अप्राप्ति की अवस्था में वे खिन्न भी हो जाते हैं। यह ठीक नहीं है। वीके गुणों की खान है, परंतु धारक की योग्यता भी तो आवश्यक है। चलिए वीके के कुछ मौलिक सिद्धांतो की चर्चा करते हैं। वीके ऊर्जा का असीमित स्त्रोत है। ऊर्जा-सागर से उपजे, इस कड़े का आधार, आध्यात्म ही है। यद्यपि प्रयोग में यह सभी प्रकार के भौतिक समाधान, साधारण इच्छा मात्र से प्रदान करता है, तथापि यदि हमारा आध्यात्म तथा मस्तिष्क इससे संलग्न हो जाए तो बहुअय्यामि परिणाम अपरिहार्य है। अर्थात अनिवार्य है कि यदि वीके का उपयोग उपयुक्त परिमाण में किया जाए तो हमे सफलता अवश्य प्राप्त होगी।इसके द्वारा असाध्य रोग अथवा परिस्थिति का भी निदान संभव है, परंतु स्मरण रखना है कि हम उस योग्य हों।अब तीसरी कक्षा का छात्र, बारहवीं कक्षा के प्रश्नों का उत्तर तो नहीं दे सकता ना?

आध्यात्म के पथ पर मेरी यात्रा १८ वर्ष पूर्व आरम्भ हुई। अनुभव अद्भुत था तथापि कुछ जानना शेष था।शीघ्र ही धर्म तथा आध्यात्म का अंतर ज्ञात हुआ और समस्त मार्ग खुल गए। यह चमत्कार शरत सर से भेंट होने के पश्चात हुआ था।आध्यात्म से मुझे कभी भी भौतिक कामनाएं नहीं रही, संभवतः इसी कारण मेरा ऊर्जा जगत में, पृथक मार्ग से प्रवेश हुआ था। एक-एक करके नवीन एवं असाधारण प्रक्रियाओ का ज्ञान मिला। कहना न होगा, यह सब शरत सर के आशीर्वाद से ही संभव हुआ था। यह सत्य है कि वीके(वाइब्सकड़ा) के आने से विचार आंदोलित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, मेरे गुरु तथा पथ-प्रदर्शक शरत सर के सानिध्य में आध्यात्म को धर्म से पृथक हो कर देखने के फलस्वरूप, स्वाजिज्ञासा के संतुष्टिजनक एवं अनुकूल उत्तर प्राप्त हो रहे थे। वास्तव मे आध्यात्मिक विज्ञान एक अद्भुत अय्याम है।यदि आपका रुझान हो तो आप सृष्टि को तथा धर्म को एक नवीन दृष्टि से अवलोकन करने लगते हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है।

जिस समय शरत सर का अनुगमन किया था, उस समय मन की तीव्र इच्छा थी कि मुझ मे ऐसी कुछ विशेषता हो जिसका मुझे अभिमान हो। परंतु जैसे ही इस ऊर्जा सागर में पदार्पण किया, मेरा समूचा “मैं” धुल गया। सत्य कहूंगा, जिस दिन प्रथम व्यक्ति का उपचार किया तथा उसने कृतज्ञतापूर्वक धन्यवाद् कहा, मैं लज्जित सा हो गया था।स्वतः ही मुँह से निकला “प्रभु की ऊर्जा है, प्रभु की ही कृपा है, इसमें मैंने कुछ नहीं किया।“तदोपरांत हम सभी के जीवन में वीके (वाइब्सकड़ा) का आगमन हुआ। वीके, समाज के लिए, मानवता के किये, शरत सर का, संभवतः सबसे अमूल्य उपहार है।

वीके के आने से ऊर्जा का पथ सरल हो गया। उपचार शीघ्र तथा सटीक होने लगे।मेरे लिए तो यह ईश्वर के वरदान से कुछ अल्प नहीं था क्योकि, ना केवल तत्काल उपचार अपितु वीके के संपर्क से मेरे आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग भी खुल गए।वीके की शक्तियां अपार है। इस की ११ सकारात्मक ब्रह्मांडीय ऊर्जा शक्तियां, उपचार संबंधी तथा संबंधकारक, दुष्कर कार्य भी सरलतापूर्वक सिद्ध करने में सक्षम है। आवश्यकता है तो केवल ३ प्रक्रियाओं की – विश्वास, अभ्यास तथा धैर्य।यह तीनो स्तम्भ ही इस ज्ञान की आधारशिला हैं।

यह तो सभी मानेंगे कि ईश्वर का अस्तित्व भी, हमारे विश्वास से ही है। धर्म, आस्था, रीति, यहां तक कि पति-पत्नी, भाई-बहिन आदि समस्त सम्बन्ध भी एक विश्वास ही है। फिर अविश्वास के साथ किसी ज्ञान का उपयोग कैसे कर सकते हैं? विक्रय शिक्षा के अन्तर्गत यह सिखाया जाता है –किसी उत्पाद के प्रति आपका आत्मविश्वास ही आपके सफल विक्रय की कुंजी है।” फिर वीके तो हमारे मन एवं आत्मा के बहुत निकट है। इसमें अविश्वास हमे सफलता कैसे देगा ?

द्वितीय चरण है – अभ्यास! हमे ज्ञात हो कि संसार की कोई भी उपलब्द्धि बिना अभयास के नहीं मिलती।फिर वह कोई क्रीड़ा हो अथवा योग, अभ्यास के अतिरिक्त उपलब्धि नहीं। विद्यालय में पाठ्य विषयो का अभ्यास कर के ही तो हम उच्च श्रेणी में पहुँचे। फिर उसमे भी कई विद्यार्थी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होते एवं कई, अल्प अंको से। परंतु, वीके के सन्दर्भ में, बिना अभ्यास के अथवा अल्पभ्यास के, हमे प्रथम अथवा सर्वोच्च श्रेणी की आशा क्यों रहतीहै? क्यों हम चाहते हैं की प्रथम दिवस से ही मन-वांछित परिणाम आये? क्या हमने कभी यह सोचा कि क्या हम वीके के योग्य हो गए हैं ? समझना यह है की जादुई परिणाम प्रदान करने वाला वीके जादुई नहीं, वैज्ञानिक साधन हैं तथा जिस प्रकार पाठ्यक्रम का निरंतर अभ्यास करके सोपान दर सोपान, श्रेणी दर श्रेणी, हम स्नातक हुए हैं, उसी प्रकार ऊर्जा के क्षेत्र में भी हमे पग-पग उन्नति करनी है। नहीं भूलना चाहिए कि वीके,शरत सर की वर्षो की तपस्या एवं अभ्यास की ही उपलब्धि है। स्मरण रहनी चाहिए कि उच्चस्तरीय ज्ञानी होने के पश्चात्भी वे कहते हैं कि “मैं आज भी सीख रहा हूँ।”  हमे सोचना चाहिए कि यदि एक प्रबुद्ध एवं विद्वान् के यह विनम्र शब्द हो सकते हैं, हमारी तो ज्ञान-यात्रा अभी प्रारम्भ ही हुई है।

जैसा कि मैंने अथपूर्व उल्लेख किया था, तृतीय चरण है “धैर्य।” किसी भी परिश्रम अथवा अभ्यास का प्रतिफल एकाएक नहीं प्राप्त होता। यदि उपरोक्त उदाहरण को ही लिया जाए तो हमारे पूरे वर्ष भर के परिश्रम का प्रतिफल वर्षान्त के पश्चात ही प्राप्त हुआ है, ऐसा हम सब ने ही है। तदोपरांत हमने धैर्य पूर्वक परिणाम की बाट जोहि है।तब वीके से मनोवांछित फल की याचना में हम उतावले क्यों हो जाते हैं? क्यों धैर्य नहीं रखते ? क्या हमने कभी सोचा है, कि अपने ईश्वर से हम प्रतिदिन प्रार्थना करतेहैं, तो क्या वे सभी वरदान हमे मिल जाते हैं ? नहीं ना ?तो क्या हम उनसे प्रार्थना करना छोड़ देते हैं ? अथवा इष्ट परिवर्तन कर लेते हैं?

हम ऐसा कुछ नहीं करते। केवल धैर्यपूर्वक प्रार्थना करते रहते हैं। इसी को हम तपस्या कहते हैं। इसी धैर्य की आवश्यकता है। वीके हम सभी को मनोवांछित प्रतिफल देने में सक्षम है परंतु हमे अभ्यास करना होगा। सटीक होना होगा।परिणाम तथा उपलब्धि की लालसा से स्वयं को पृथक करना होगा। धैर्यपूर्वक जुटे रहना होगा। विश्वास की जिये, वह रोगी, जिसका आप उपचार कर रहे हैं, स्वस्थ होकर, स्वयं आपको धन्यवाद् सहित, आपकी उपलब्धि से अवगत करवाएगा।संबंधों में प्रगाढ़ता एवं एकजुटता का भान आपको स्वयं ही होगा। उस दिन आपको स्वयं ही ज्ञात हो जाएगा – आप ऊर्जा क्षेत्र में स्नातक हो चुके हैं।

तो यह लौ जलाये रखना। पग-पग आगे बढ़ते रहना। ऊर्जा सागर है यह…… बूँद भी प्राप्त हो तो तर जाएंगे।